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Indian National Movement (Phase III)

भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन (तृतीय चरण)

Indian National Movement (Phase III)

भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का तृतीय चरण (1919 से 1947 ई.)


तृतीय चरण 1919 ई. से 1947 ई. तक रहा। यह आन्दोलन देश की आज़ादी के लिए हो रहे संघर्ष का अंतिम चरण माना जाता है। इस काल में महात्मा गाँधी के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूर्ण स्वरज्य की प्राप्ति के लिए आन्दोलन प्रारम्भ किया।

नील की खेती


1916 ई. में गाँधी जी ने अहमदाबाद के पास 'साबरमती आश्रम' की स्थापना की और अप्रैल, 1917 में बिहार में स्थित चम्पारन ज़िले में किसानों पर किये जा रहे अत्याचार के ख़िलाफ़ आन्दोलन चलाया। दक्षिण अफ़्रीका में गाँधी जी के संघर्ष की कहानी सुनकर चम्पारन (बिहार) के अनेक किसानों, जिनमें रामचन्द्र शुक्ल प्रमुख थे, ने गाँधी जी को आमंत्रित किया। यहाँ नील के खेतों में कार्य करने वाले किसानों पर यूरोपीय निलहे बहुत अधिक अत्याचार कर रहे थे। उन्हें ज़मीन के कम से कम 3/20 भाग पर नील की खेती करना तथा निलहों द्वारा तय दामों पर उसे बेचना पड़ता था।

ख़िलाफ़त आन्दोलन


ख़िलाफ़त आन्दोलन' (1919-1922 ई.) का सूत्रपात भारतीय मुस्लिमों के एक बहुसंख्यक वर्ग ने राष्ट्रीय स्तर पर किया। गाँधी जी ने इस आन्दोलन को हिन्दू तथा मुस्लिम एकता के लिय उपयुक्त समझा और मुस्लिमों के प्रति अपनी सहानुभूति प्रकट की। महात्मा गाँधी ने 1919 ई. में 'अखिल भारतीय ख़िलाफ़त समिति' का अधिवेशन अपनी अध्यक्षता में किया। उनके कहने पर ही असहयोग एवं स्वदेशी की नीति को अपनाया गया। 1918-1919 ई. के मध्य भारत में 'ख़िलाफ़त आन्दोलन' मौलाना मुहम्मद अली, शौकत अली एवं अबुल कलाम आज़ाद के सहयोग से ज़ोर पकड़ता चला गया।

असहयोग आन्दोलन


सितम्बर, 1920 में असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रम पर विचार करने के लिए कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में 'कांग्रेस महासमिति के अधिवेशन' का आयोजन किया गया। इस अधिवेशन की अध्यक्षता लाला लाजपत राय ने की। इसी अधिवेशन में कांग्रेस ने पहली बार भारत में विदेशी शासन के विरुद्ध सीधी कार्यवाही करने, विधान परिषदों का बहिष्कार करने तथा असहयोग व सविनय अवज्ञा आन्दोलन को प्रारम्भ करने का निर्णय लिया।
1 अगस्त, 1920 को आरम्भ किया। पश्चिमी भारत, बंगाल तथा उत्तरी भारत में असहयोग आन्दोलन को अभूतपूर्व सफलता मिली। विद्यार्थियों के अध्ययन के लिए अनेक शिक्षण संस्थाएँ जैसे काशी विद्यापीठ, बिहार विद्यापीठ, गुजरात विद्यापीठ, बनारस विद्यापीठ, तिलक महाराष्ट्र विद्यापीठ एवं अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय आदि स्थापित की गईं।

स्वराज्य पार्टी


स्वराज्य पार्टी' की स्थापना 1 जनवरी, 1923 ई. में परिवर्तनवादियों का नेतृत्व करते हुए चितरंजन दास और पंडित मोतीलाल नेहरू ने विट्ठलभाई पटेल, मदन मोहन मालवीय और जयकर के साथ मिलकर इलाहाबाद में की। इस पार्टी की स्थापना कांग्रेस के ख़िलाफ़ की गई थी। इसके अध्यक्ष चितरंजन दास तथा सचिव मोतीलाल नेहरू बनाये गए थे। स्वराज्य पार्टी के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित थे

  • शीघ्र-अतिशीघ्र डोमिनियन स्टेट्स प्राप्त करना।
  • पूर्ण प्रान्तीय स्वयत्तता प्राप्त करना।
  • सरकारी कार्यों में बाधा उत्पन्न करना।स्वराज्यवादियों ने विधान मण्डलों के चुनाव लड़ने व विधानमण्डलों में पहुँचकर सरकार की आलोचना करने की रणनीति बनाई। स्वराज्यवादियों को विश्वास था कि वे शांतिपूर्ण उपायों से चुनाव में भाग लेकर अपने अधिक से अधिक सदस्यों को कौंसिल में भेजकर उस पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लेंगे।वरसाड आन्दोलन 
  • वरसाड आन्दोलन' (1923-1924 ई.) का संचालन सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में गुजरात में किया गया था। अंग्रेज़ ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाये गए 'डकैती कर' के विरोध में इस आन्दोलन का संचालन किया गया वायकोम सत्याग्रह
  •  'वायकोम सत्याग्रह' (1924-1925 ई.) एक प्रकार का गाँधीवादी आन्दोलन था। इस आन्दोलन का नेतृत्व टी. के. माधवन, के. केलप्पन तथा के. पी. केशवमेनन ने किया। यह आन्दोलन त्रावणकोर के एक मन्दिर के पास वाली सड़क के उपयोग से सम्बन्धित था।
    काकोरी काण्ड 
  • 1924 ई. में 'हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशिन' की स्थापना हुई। इसके मुख्य कार्यकर्ता शचीन्द्रनाथ सान्याल, राम प्रसाद बिस्मिल, योगेश चन्द्र चटर्जी, अशफ़ाकउल्ला ख़ाँ तथा रोशन सिंह आदि थे। उत्तर प्रदेश के क्रांतिकारियों ने 9 अगस्त, 1925 ई. को काकोरी जाने वाली गाड़ी में लूट-पाट की। इस घटना को कालान्तर में 'काकोरी काण्ड' के नाम से जाना गया। इस काण्ड के मुख्य अभियुक्त राम प्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाकउल्ला ख़ाँ, शचीन्द्र बख्शी, राजेन्द्र लाहिड़ी, चन्द्रशेखर आज़ाद एवं भगत सिंह आदि थे। इन नेताओं पर दो वर्ष तक मुकदमा चलने के बाद राम प्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाकउल्ला ख़ाँ को फाँसी तथा बख्शी को आजीवन कारावास की सज़ा मिली। चन्द्रशेखर आज़ाद के नेतृत्व में सितम्बर, 1928 ई. को दिल्ली के फ़िरोज़शाह कोटला मैदान में 'हिन्दुस्तान सोशिलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन' की स्थापना हुई, जिसका उद्देश्य भारत में एक 'समाजवादी गणतंत्र' की स्थापना करना था।
    भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की शहादत 
  • 30 अक्टूबर, 1928 ई. को लाहौर से 'साइमन कमीशन' के विरुद्ध प्रदर्शन करते समय पुलिस लाठी चार्ज में घायल हो जाने से लाला लाजपत राय की बाद में मृत्यु हो गयी। मृत्यु का बदला लेने के लिए भगत सिंह के नेतृत्व में पंजाब के क्रांतिकारियों ने 17 दिसम्बर, 1928 को लाहौर के तत्कालीन सहायक पुलिस कप्तान सॉण्डर्स की गोली मारकर हत्या कर दी।
    पब्लिक सेफ्टी बिल' पास होने के विरोध में 8 अप्रैल, 1929 ई. को बटुकेश्वर दत्त एवं भगत सिंह ने 'सेन्ट्रल लेजिस्लेटिव असेम्बली' में ख़ाली बेंचों पर बम फेंका। इस बम काण्ड का उद्देश्य किसी की हत्या करना नहीं था।, वे तो फ़्राँसीसी क्रातिकारियों के उस कथन को दोहरा भर रहे थे कि 'बहरों को कोई बात सुनाने के लिए अधिक कोलाहल की आवश्यकता पड़ती है।' भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को चूंकि इस बम घटना के कारण फाँसी नहीं दी जा सकती थी, इसलिए उन्हें 'सॉण्डर्स हत्या काण्ड' एवं 'लाहौर षड्यंत्र' से जोड़ दिया गया। 23 मार्च, 1931 ई. को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फाँसी पर लटका दिया गया।
    साइमन कमीशन
  •  साइमन कमीशन' की नियुक्ति ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने सर जॉन साइमन के नेतृत्व में की थी। इस कमीशन में सात सदस्य थे, जो सभी ब्रिटेन की संसद के मनोनीत सदस्य थे। यही कारण था कि इसे 'श्वेत कमीशन' कहा गया। साइमन कमीशन की घोषणा 8 नवम्बर, 1927 ई. को की गई। कमीशन को इस बात की जाँच करनी थी कि क्या भारत इस लायक़ हो गया है कि यहाँ लोगों को संवैधानिक अधिकार दिये जाएँ। इस कमीशन में किसी भी भारतीय को शामिल नहीं किया गया, जिस कारण इसका बहुत ही तीव्र विरोध हुआ।
    नेहरू समिति 
  • नेहरू समिति' का गठन 28 फ़रवरी, 1928 ई. को को किया गया था। 'साइमन कमीशन' के बहिष्कार के बाद भारत सचिव लॉर्ड बर्कन हेड ने भारतीयों के समक्ष एक चुनौती रखी कि वे ऐसे संविधान का निर्माण कर ब्रिटिश संसद के समक्ष रखें, जिसे सभी दलों का समर्थन प्राप्त हो। कांग्रेस ने बर्कन हेड की इस चुनौती को स्वीकार कर लिया। पंडित मोतीलाल नेहरू को इस समिति का अध्यक्ष बनाया गया था। समिति के अन्य सदस्यों में, सर अली इमाम, एम.एस. अणे, तेजबहादुर सप्रू, मंगल सिंह, जी.आर. प्रधान, शोएब कुरेशी, सुभाषचन्द्र बोस, एन.एम. जोशी और जी.पी. प्रधान आदि थे।
    जिन्ना के चौदह सूत्र 
  • जिन्ना के चौदह सूत्र' वाले मांग पत्र को 1929 ई. में प्रस्तुत किया गया था। मुहम्मद अली जिन्ना मुस्लिम लीग के अध्यक्ष थे और वे 'नेहरू समिति' द्वारा प्रस्तुत की गई 'नेहरू रिपोर्ट' से असंतुष्ट थे। यही कारण था कि उन्होंने रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया। 'नेहरू रिपोर्ट' से सिक्ख समुदाय भी असंतुष्ट था। मुस्लिम लीग ने नेहरू रिपोर्ट के विकल्प के रूप में मार्च, 1929 ई. में जिन्ना के चौदह सूत्र वाले मांग-पत्र को प्रस्तुत किया, इसे ही 'जिन्ना के चौदह सूत्र' कहा जाता है।
    बारदोली सत्याग्रह 
  • बारदोली सत्याग्रह' 'भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन' का सबसे संगठित, व्यापक एवं सफल आन्दोलन 1922 ई. से चलाया। बाद में इसका नेतृत्व सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया। सूरत (गुजरात) के बारदोली तालुके में 1920 ई. में किसानों द्वारा 'लगान' न अदायगी का आन्दोलन चलाया गया।आन्दोलन के सफल होने पर वहाँ की महिलाओं ने पटेल को 'सरदार' की उपाधि प्रदान की।
  • गाँधी जी की ग्यारह सूत्री मांगगाँधी जी ने लॉर्ड इरविन एवं रैम्जे मैकडोनाल्ड के सम्मुख 31 जनवरी, 1930 ई. को 11 सूत्री प्रस्ताव रखा, जो इस प्रकार था-
    1. रुपये का पुनर्मूल्यन विनिमय दर में कमी एक शिलिंग 4 पेंस हो।
    2. मद्यनिषेध लागू किया जाये।
    3. नमक पर लगा कर समाप्त किया जाये।
    4. सैनिक व्यय में 50 प्रतिशत की कमी हो।
    5. अधिक वेतन पाने वाले सरकारी पदाधिकारियों की संख्या कम की जाये।
    6. विदेशी कपड़े पर विशेष आयात कर लगाया जाये।
    7. तटकर विधेयक लाया जाये।
    8. सभी राजनीतिक बन्दी छोड़ दिये जायें।
    9. गुप्तचर विभाग को समाप्त किया जाय।
    10. भारतीयों को आत्म-रक्षा के लिए हथियार रखने का अधिकार प्रदान किया जाय।
    11. भू-राजस्व 1/2 किया जाये।
    महात्मा गाँधी ने कहा कि यदि 12 मार्च, 1930 ई. तक मांगे नहीं स्वीकार की गयीं तो वे नमक क़ानून का उल्लंघन करेंगे। गाँधी जी के उपर्युक्त मांग-पत्र पर सरकार ने कोई सकारात्मक रुख़ नहीं अपनाया। इसके फलस्वरूप 14 फ़रवरी, 1930 ई. को साबरमती में कांग्रेस की एक बैठक में गाँधी जी के नेतृत्व में 'सविनय अवज्ञा आंदोलन' को चलाने का निश्चय किया गया।
    सविनय अवज्ञा आन्दोलन
  • महात्मा गांधी ने अपनी इस माँग पर ज़ोर देने के लिए 6 अप्रैल, 1930 ई. को सविनय अविज्ञा आन्दोलन छेड़ा। जिसका उद्देश्य कुछ विशिष्ट प्रकार के ग़ैर-क़ानूनी कार्य सामूहिक रूप से करके ब्रिटिश सरकार को झुका देना था।
    दांडी मार्च
  • गाँधी जी और उनके स्वयं सेवकों द्वारा 12 मार्च, 1930 ई. को दांडी यात्रा प्रारम्भ की गई। इसका मुख्य उद्देश्य था अंग्रेज़ों द्वारा बनाये गए 'नमक क़ानून को तोड़ना'। गाँधी जी ने अपने 78 स्वयं सेवकों, जिनमें वेब मिलर भी एक था, के साथ साबरमती आश्रम से 358 कि.मी. दूर स्थित दांडी के लिए प्रस्थान किया। लगभग 24 दिन बाद 6 अप्रैल, 1930 ई. को दांडी पहुँचकर उन्होंने समुद्रतट पर नमक क़ानून को तोड़ा। गाँधी जी की दांडी यात्रा के बारे में सुभाषचन्द्र बोस ने लिखा है- "महात्मा जी की दांडी मार्च की तुलना 'इल्बा' से लौटने पर नेपालियन के 'पेरिस मार्च' और राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने के लिए मुसोलिनी के 'रोम मार्च' से की जा सकती है।" चारों तरफ़ फैली इस असहयोग की नीति से अंग्रेज़ ब्रिटिश हुकूमत बुरी तरह से झल्ला गयी। 5 मई, 1930 ई. को गाँधी जी को गिरफ्तार कर लिया गया।
    गाँधी-इरविन समझौता
  • गाँधी-इरविन समझौता' 5 मार्च, 1931 ई. को हुआ था। महात्मा गाँधी और लॉर्ड इरविन के मध्य हुए इस समझौते को 'दिल्ली पैक्ट' के नाम से भी जाना जाता है। गाँधी जी ने इस समझौते को बहुत महत्त्व दिया था, जबकि पंडित जवाहर लाल नेहरू और नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने इसकी कड़ी आलोचना की। कांग्रेसी भी इस समझौते से पूरी तरह असंतुष्ट थे, क्योंकि गाँधी जी भारत के युवा क्रांतिकारियों भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फाँसी के फंदे से बचा नहीं पाए थे।
    इस समझौते की शर्तें निम्नलिखित थीं-
    1. कांग्रेस व उसके कार्यकर्ताओं की जब्त की गई सम्पत्ति वापस की जाये।
    2. सरकार द्वारा सभी अध्यादेशों एवं अपूर्ण अभियागों के मामले को वापस लिया जाये।
    3. हिंसात्मक कार्यों में लिप्त अभियुक्तों के अतिरिक्त सभी राजनीतिक क़ैदियों को मुक्त किया जाये।
    4. अफीम, शराब एवं विदेशी वस्त्र की दुकानों पर शांतिपूर्ण ढंग से धरने की अनुमति दी जाये।
    5. समुद्र के किनारे बसने वाले लोगों को नमक बनाने व उसे एकत्रित करने की छूट दी जाये।
    गोलमेज सम्मेलन
  • गोलमेज सम्मेलन' 1930 से 1932 ई. के बीच लंदन में आयोजित हुआ। इस सम्मेलन का आयोजन तत्कालीन वाइसराय लॉर्ड इरविन की 31 अगस्त, 1929 ई. की घोषणा के आधार पर हुआ था। इस सम्मेलन में लॉर्ड इरविन ने साइमन कमीशन की रिपोर्ट प्रकाशित हो जाने के उपरान्त भारत के नये संविधान की रचना के लिए लंदन में 'गोलमेज सम्मेलन' का प्रस्ताव रखा। नवम्बर, 1931 ई. में लंदन में 'गोलमेज सम्मेलन' का आयोजन हुआ, जिसमें भारत और इंग्लैण्ड के सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया गया। इस सम्मेलन की अध्यक्षता इंग्लैण्ड के तत्कालीन प्रधानमंत्री रैम्जे मैक्डोनल्ड ने की और तीन सम्मेलन आयोजित किये-
  • प्रथम गोलमेज सम्मेलन - 12 सितम्बर, 1930 ई. से 29 जनवरी, 1931 ई. तक
  • द्वितीय गोलमेज सम्मेलन - 7 सितम्बर, 1931 ई. से 2 दिसम्बर, 1931 ई. तक
  • तृतीय गोलमेज सम्मेलन - 17 नवम्बर, 1932 ई. से 24 दिसम्बर, 1932 ई. तक
  • पूना समझौता
    पूना समझौता' 24 सितम्बर, 1932 ई. को हुआ। यह समझौता राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की रोगशैया पर हुआ। ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडोनाल्ड के 'साम्प्रदायिक निर्णय' के द्वारा न केवल मुस्लिमों को, बल्कि दलित जाति के हिन्दुओं को सवर्ण हिन्दुओं से अलग करने के लिए भी पृथक् प्रतिनिधित्व प्रदान कर दिया गया था।
    पाकिस्तान की मांग
    मुस्लिम लीग' के 'लाहौर अधिवेशन' की अध्यक्षता करते हुए मुहम्मद अली जिन्ना ने 23 मार्च, 1940 ई. को भारत से अलग मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान की मांग की।
    फ़ारवर्ड ब्लॉक
    फ़ारवर्ड ब्लॉक' नाम की एक नई पार्टी का गठन नेताजी सुभाषचन्द्र बोस द्वारा अप्रैल, 1939 ई. में किया गया था। 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' के 'हरिपुरा अधिवेशन' में 19 फ़रवरी, 1938 ई. को सुभाषचन्द्र बोस को अध्यक्ष चुना गया। कांग्रेस के 'त्रिपुरा अधिवेशन' में सुभाषचन्द्र बोस पुनः कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये थे, परन्तु गाँधी जी के विरोध के चलते उन्होंने त्यागपत्र दे दिया तथा अप्रैल, 1939 ई. मे 'फ़ारवर्ड ब्लॉक' नाम की एक नई पार्टी का गठन किया। उल्लेखनीय है कि सुभाषचन्द्र बोस के त्याग पत्र के पश्चात् डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था।
    क्रिप्स प्रस्ताव
    क्रिप्स प्रस्ताव' 30 मार्च, 1942 ई. को प्रस्तुत किया गया था। 1942 ई. में जापान की फ़ौजों के रंगून (वर्तमान यांगून) पर क़ब्ज़ा कर लेने से भारत के सीमांत क्षेत्रों पर सीधा ख़तरा पैदा हो गया था। अब ब्रिटेन ने युद्ध में भारत का सक्रिय सहयोग पाने के लिए युद्धकालीन मंत्रिमण्डल के एक सदस्य स्टैफ़ोर्ड क्रिप्स को घोषणा के एक मसविदे के साथ भारत भेजा। क्रिप्स प्रस्तावों में भारत के विभाजन की रूपरेखा का संकेत मिल रहा था, अतः भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अंतरिम प्रबंध, रक्षा से सम्बंधित योजना एवं प्रान्तों के आत्मनिर्णय के अधिकार को अस्वीकार कर दिया।
    भारत छोड़ो आन्दोलन
    भारत छोड़ो आन्दोलन' 9 अगस्त, 1942 ई. को सम्पूर्ण भारत में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के आह्वान पर प्रारम्भ हुआ था। भारत की आज़ादी से सम्बन्धित इतिहास में दो पड़ाव सबसे ज़्यादा महत्त्वपूर्ण नज़र आते हैं- प्रथम '1857 ई. का स्वतंत्रता संग्राम' और द्वितीय '1942 ई. का भारत छोड़ो आन्दोलन'। भारत को जल्द ही आज़ादी दिलाने के लिए महात्मा गाँधी द्वारा अंग्रेज़ शासन के विरुद्ध यह एक बड़ा 'नागरिक अवज्ञा आन्दोलन' था। 'क्रिप्स मिशन' की असफलता के बाद गाँधी जी ने एक और बड़ा आन्दोलन प्रारम्भ करने का निश्चय ले लिया था। इस आन्दोलन को 'भारत छोड़ो आन्दोलन' का नाम दिया गया।
    कैबिनेट मिशन
    ब्रिटेन में 26 जुलाई, 1945 ई. को क्लीमेंट एटली के नेतृत्व में ब्रिटिश मंत्रिमण्डल ने सत्ता ग्रहण की। प्रधानमंत्री एटली ने 15 फ़रवरी, 1946 ई. को भारतीय संविधान सभा की स्थापना एवं तत्कालीन ज्वलन्त समस्याओं पर भारतीयों से विचार-विमर्श के लिए 'कैबिनेट मिशन' को भारत भेजने की घोषणा की।
    माउन्टबेटन योजना
    24 मार्च, 1947 ई. को लॉर्ड माउन्ट बैटन भारत के वायसराय बनकर आये। पद ग्रहण करते ही उन्होंने 'कांग्रेस' एवं 'मुस्लिम लीग' के नेताओं से तात्कालिक समस्याओं पर व्यापक विचार विमर्श किया। 'मुस्लिम लीग' पाकिस्तान के अतिरिक्त किसी भी विकल्प पर सहमत नहीं हुई। माउन्ट बेटन ने कांग्रेस से देश के विभाजन रूपी कटु सत्य को स्वीकार करने का अनुरोध किया। कांग्रेस नेता भी परिस्थितियों के दबाव को महसूस कर इस सत्य को स्वीकार करने के लिए तैयार हो गये।
    माउन्टबेटन योजना' स्वीकार करने के बाद देश के विभाजन की तैयारी आरंभ हो गयी। बंगाल और पंजाब में ज़िलों के विभाजन तथा सीमा निर्धारण का कार्य एक कमीशन के अधीन सौंपा गया, जिसकी अध्यक्षता 'रेडक्लिफ़' ने की। इसीलिए भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजन करने वाली रेखा को रैडक्लिफ़ रेखा कहा गया। विभाजन के बाद 15 अगस्त, 1947 ई. को भारत तथा पाकिस्तान नाम के दो नये राष्ट्र अस्तित्व में आ गये। जवाहरलाल नेहरू स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री एवं लॉर्ड माउन्ट बेटन प्रथम गवर्नर-जनरल बने तथा पाकिस्तान का गवर्नर-जनरल मुहम्मद अली जिन्ना एवं प्रधामंत्री लियाकत अली को बनाया गया।
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