Indian National Movement (Phase II)
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन (द्वितीय चरण)
Indian National Movement (Phase II)
आन्दोलन का द्वितीय चरण (1905-1919 ई.)
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के इस चरण में एक ओर उग्रवादी तो दूसरी ओर क्रान्तिकारी आन्दोलन चलाये गये। दोनों ही एक मात्र उद्देश्य, ब्रिटिश राज्य से मुक्ति एवं पूर्ण स्वराज्य की प्राप्ति, के लिए लड़ रहे थे। एक तरफ़ उग्रवादी विचारधारा के लोग 'बहिष्कार आन्दोलन' को आधार बनाकर लड़ रहे थे तो दूसरी ओर क्रान्तिकारी विचारधारा के लोग बमों और बन्दूकों के उपयोग से स्वतन्त्रता प्राप्त करना चाहते थे। जहाँ एक ओर उग्रवादी शान्तिपूर्ण सक्रिय राजनीतिक आन्दोलनों में विश्वास करते थे, वहीं क्रातिकारी अंग्रेज़ों को भारत से भगाने में शक्ति एवं हिंसा के उपयोग में विश्वास करते थे।
ब्रिटिश सरकार द्वारा लगातार कांग्रेस की मांगो के प्रति अपनायी जाने वाली उपेक्षापूर्ण नीति ने कांग्रेस के युवा नेताओं, जैसे- बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय एवं विपिन चन्द्र पाल को अन्दर तक आन्दोलित कर दिया। इन युवा नेताओं ने उदारवादी नेताओं की राजनीतिक भिक्षावृति में कोई विश्वास नहीं जताया। इन्होंने सरकार से अपनी मांगे मनवाने के लिए कठोर क़दम उठाने की आवश्यकता पर बल दिया।
विदेशो में क्रान्तिकारी आन्दोलन
जर्मनी के सहयोग से दिसम्बर, 1915 में 'अंतरिम भारत सरकार' की स्थापना की।
फ़रवरी, 1905 में भारत से बाहर लन्दन की धरती पर श्यामजी कृष्ण वर्मा के द्वारा 'इण्डियन होमरूल सोसायटी' की स्थापना की गई। इसे 'इण्डिया हाउस' की संज्ञा दी जाती है। अब्दुल्लाह सुहारवर्दी इसके उपाघ्यक्ष थे। 'इण्डियन होमरूल सोसायटी' ने 'इण्डियन सोसिआलाजिस्ट' नामक पत्रिता भी निकाली। शीघ्र ही 'इण्डिया हाउस' लन्दन में निवास करने वाले भारतीयों के लिए आन्दोलन का केन्द्र बन गयी। इस संस्था के अन्य सदस्य थे- लाला हरदयाल, मदन लाल धींगरा, विनायक दामोदर सावरकर आदि।
1913 ई. में अनेक भारतीय लोगों ने लाला हरदयाल के नेतृत्व में सैन फ़्राँसिस्को (अमेरिका) में 'ग़दर पार्टी' की स्थापना की। इसके अध्यक्ष सोहन सिंह थे। लाला हरदयाल इस पार्टी के प्रचार विभाग के सचिव थे। इस संगठन ने 'युगांतर प्रेस' की स्थापना कर 1 नवम्बर, 1913 से 'गदर' नामक साप्ताहिक (बाद में मासिक) पत्र का सम्पादन किया। यह समाचार पत्र हिन्दी, गुरुमुखी, उर्दू एवं गुजराती भाषा में निकाला जाता था।
मुस्लिम लीग की स्थापना
1 अक्टूबर, 1906 ई. को एच.एच. आगा ख़ाँ के नेतृत्व में मुस्लिमों का एक दल वायसराय लॉर्ड मिण्टो से शिमला में मिला। अलीगढ़ कॉलेज के प्रिंसपल आर्चबोल्ड इस प्रतिनिधिमण्डल के जनक थे। इस प्रतिनिधिमण्डल ने वायसराय से अनुरोध किया कि प्रान्तीय, केन्द्रीय व स्थानीय निर्वाचन हेतु मुस्लिमों के लिए पृथक् साम्प्रादायिक निर्वाचन की व्यवस्था की जाय। इस शिष्टमण्डल को भेजने के पीछे अंग्रेज़ उच्च अधिकारियों का हाथ था। मिण्टो ने इनकी मांगो का पूर्ण समर्थन किया। जिसके फलस्वरूप मुस्लिम नेताओं ने ढाका के नवाब सलीमुल्ला के नेतृत्व में 30 दिसम्बर, 1906 ई. को ढाका में 'मुस्लिम लीग' की स्थापना की।
मार्ले मिण्टो सुधार
जब लॉर्ड मिण्टो भारत का गवर्नर बना, तब उस समय समूचा भारत राजनीतिक अशान्ति की तरफ़ धीरे-धीरे बढ़ रहा था। तत्कालीन भारत सचिव जॉन मार्ले एवं वायसराय लॉर्ड मिण्टो ने सुधारों का 'भारतीय परिषद एक्ट, 1909' पारित किया, जिसे 'मार्ले मिण्टो सुधार' कहा गया। 25 मई को विधेयक पारित हुआ तथा 15 नवम्बर, 1909 को राजकीय अनुमोदन के बाद लागू हो गया। इस एक्ट के अन्तर्गत केंद्रीय तथा प्रन्तीय विधानमण्डलो के आकार एवं उनकी शक्ति में वृद्धि की गई।
राजद्रोह सभा अधिनियम
मार्ले मिण्टो सुधारों पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उग्रवादी संगठनों ने अपनी क्रान्तिकारी गतिविधयों को काफ़ी तेज कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप ब्रिटिश सरकार ने 1911 ई. में 'राजद्रोह सभा अधिनियम' पारित करके उग्रवादी दल के नेता लाला लाजपत राय एवं अजीत सिंह को गिरफ्तार कर आन्दोलन को कुचलने का प्रयास किया।
दिल्ली दरबार
1911 ई. में ही दिल्ली में एक भव्य दरबार का आयोजन इंग्लैण्ड के सम्राट जॉर्ज पंचम एवं महारानी मेरी के स्वागत में किया गया। उस समय भारत का वायसराय लॉर्ड हार्डिंग था। इस दरबार में बंगाल विभाजन को रद्द करने की घोषणा हुई और साथ ही बंगाली भाषी क्षेत्रों को मिलाकर एक अलग प्रांत बनाया गया। राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानान्तरित करने की घोषणा हुई, यद्यपि राजधानी का दिल्ली में विधिवत स्थानान्तरण 1912 ई. में ही संभव हो सका।
कामागाटामारू प्रकरण
कामागाटामारू प्रकरण 1914 ई. में घटा। इस प्रकरण के अंतर्गत कनाडा की सरकार ने उन भारतीयों पर कनाडा में घुसने पर पूरी तरह से प्रतिबन्ध लगा दिया, जो भारत से सीधे कनाडा न आया हो। कामागाटामारू जहाज़, जिस पर 376 यात्री सवार थे, उसे कनाडा में घुसने नहीं दिया गया। जब ये जहाज़ 'याकोहामा' पहुँचा, तब उससे पहले ही प्रथम विश्वयुद्ध प्रारम्भ हो गया। इसके बाद जब जहाज़ 'बजबज' पहुँचा तो यात्रियों व पुलिस में झड़पें हुईं। इसमें 18 यात्री मारे गये और जो शेष बचे थे, वे जेल में डाल दिये गए। हुसैन रहीम, सोहन लाल पाठक एवं बलवंत सिंह ने इन यात्रियो की लड़ाई लड़ने के लिए 'शोर कमटी' (तटीय समिति) की स्थापना की।
कांग्रेस अधिवेशन लखनऊ
कांग्रेस का लखनऊ अधिवेशन अम्बिकाचरण मजूमदार की अध्यक्षता में 1916 ई. में लखनऊ में सम्पन्न हुआ। इस अधिवेशन में ही गरम दल तथा नरम दल, जिनके आपसी मतभेदों के कारण कांग्रेस का दो भागों में विभाजन हो गया था, उन्हें फिर एक साथ लाया गया। लखनऊ अधिवेशन में 'स्वराज्य प्राप्ति' का भी प्रस्ताव पारित किया गया। कांग्रेस ने 'मुस्लिम लीग' द्वारा की जा रही 'साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व' की मांग को भी स्वीकार कर लिया।
होमरूल लीग आन्दोलन
होमरूल लीग आन्दोलन' का उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन रहते हुए संवैधानिक तरीक़े से स्वशासन को प्राप्त करना था। इस लीग के प्रमुख नेता बाल गंगाधर तिलक एवं श्रीमती एनी बेसेंट थीं। स्वराज्य की प्राप्ति के लिए तिलक ने 28 अप्रैल, 1916 ई. को बेलगांव में 'होमरूल लीग' की स्थापना की थी। इनके द्वारा स्थापित लीग का प्रभाव कर्नाटक, महाराष्ट्र (बम्बई को छोड़कर), मध्य प्रान्त एवं बरार तक फैला हुआ था।
मांटेग्यू-चेम्सफ़ोर्ड रिपोर्ट
भारत सचिव मांटेग्यू द्वारा द्वारा 20 अगस्त, 1917 ई. को ब्रिटेन की 'कामन्स सभा' में एक प्रस्ताव पढ़ा गया, जिसमें भारत में प्रशासन की हर शाखा में भारतीयों को अधिक प्रतिनिधित्व दिये जाने की बात कही गयी थी। इसे 'मांटेग्यू घोषणा' कहा गया। मांटेग्यू घोषणा को उदारवादियों ने 'भारत के मैग्नाकार्टा की संज्ञा' दी। नवम्बर, 1917 में मांटेग्यू भारत आये और यहाँ उन्होंने तत्कालीन वायसराय लॉर्ड चेम्सफ़ोर्ड से व्यापक विचार विमर्श के बाद 1919 ई. में 'मांटेग्यू-चेम्सफ़ोर्ड रिपोर्ट' को जारी किया। 'मांटेग्यू घोषणा' और 'मांटेग्यू-चेम्सफ़ोर्ड रिपोर्ट' के अधार पर निर्मित 'भारत सरकार अधिनियम 1919' को मांटेग्यू ने संसद द्वारा निर्मित सरकार और भारत के जनप्रतिनिधियों के बीच सेतु की संज्ञा दी। 1919 ई. के 'भारत सरकार अधिनियम' के नाम से प्रसिद्ध इस एक्ट से प्रान्तो में 'द्वैध शासन' की व्यवस्था की गई।
1918 ई. में सुरेन्द्रनाथ बनर्जी के नेतृत्व में उदारवारी नेताओ ने मांटेग्यू सुधारों का स्वागत किया तथा कांग्रेस से अलग होकर 'अखिल भारतीय उदारवादी संघ' की स्थापना की। 1919 ई. के अधिवेशन का संवैधानिक सुधार 1921 ई. में लागू हुआ। इस अधिनियम के अन्तर्गत प्रान्तीय विषय पहली बार आरक्षित और हस्तांतरित में विभाजित हुये। पहली बार भारतीय विधानमण्डल को बजट पास करने सम्बन्धित अधिकार मिला तथा पहली बार 'लोक सेवा आयोग' की स्थापना का प्रवधान किया गया। 1919 ई. के अधिनियम की दस वर्ष बाद समीक्षा के लिए एक वैधानिक आयोग की नियुक्ति का प्रावधान था, बाद में यह आयोग 'साइमन आयोग' के नाम से जाना गया।
रौलट एक्ट
रौलट एक्ट 8 मार्च, 1919 ई. को लागू किया गया। भारत में क्रान्तिकारियों के प्रभाव को समाप्त करने तथा राष्ट्रीय भावना को कुचलने के लिए ब्रिटिश सरकार ने न्यायाधीश 'सर सिडनी रौलट' की अध्यक्षता में एक कमेटी नियुक्त की। कमेटी ले 1918 ई. में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। कमेटी द्वारा दिये गये सुझावों के अधार पर केन्द्रीय विधानमण्डल में फ़रवरी, 1919 ई. में दो विधेयक लाये गये। पारित होने के उपरान्त इन विधेयकों को 'रौलट ऐक्ट' या 'काला क़ानून' के नाम से जाना गया।
जलियांवाला बाग़ हत्याकांड
पंजाब के अमृतसर नगर में जलियाँवाला बाग़ नामक स्थान पर अंग्रेज़ों की सेनाओं ने भारतीय प्रदर्शनकारियों पर अंधाधुंध गोलियां चलाकर बड़ी संख्या में उनकी हत्या कर दी। यह घटना 13 अप्रैल, 1919 ई. को घटित हुई। इस घटना के बाद महात्मा गांधी ने 1920-1922 के 'असहयोग आंदोलन' की शुरुआत की। उस दिन वैशाखी का त्योहार था। 1919 ई. में भारत की ब्रिटिश सरकार ने रॉलेट एक्ट का शांतिपूर्वक विरोध करने पर जननेता पहले ही गिरफ्तार कर लिए थे। इस गिरफ्तारी की निंदा करने और पहले हुए गोली कांड की भर्त्सना करने के लिए जलियाँवाला बाग़ में शांतिपूर्वक एक सभा आयोजित की गयी थी। 13 अप्रैल, 1919 को तीसरे पहर दस हज़ार से भी ज़्यादा निहत्थे स्त्री, पुरुष और बच्चे जनसभा करने पर प्रतिबंध होने के बावजूद अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ में विरोध सभा के लिए एकत्र हुए थे।
हन्टर समिति
हन्टर समिति' की स्थापना ब्रिटिश सरकार द्वारा 1 अक्टूबर, 1919 ई. को की गई थी। लॉर्ड हन्टर को इस समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। देश में जलियांवाला बाग़ के हत्याकांड को लेकर जो उग्र प्रदर्शन आदि हुए, उससे विवश होकर अंग्रेज़ सरकार ने घटना की जाँच करने के लिए 'हन्टर समिति' की स्थापना की। इस समिति ने जलियांवाला बाग़ के सम्पूर्ण प्रकरण पर लीपा-पोती करने का प्रयास किया। ब्रितानिया अख़बारों में घटना के लिए ज़िम्मेदार जनरल डायर को 'ब्रिटिश साम्राज्य का रक्षक' और 'ब्रिटिश साम्राज्य का शेर' आदि कहकर सम्बोधित किया गया।
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