Vijay Nagar Empire
Vijay Nagar Empire |
विजय नगर साम्राज्य
Vijay Nagar Empire
विजयनगर साम्राज्य (1336-1646) मध्यकालीन दक्षिण भारत का एक साम्राज्य था। इसके राजाओं ने 310 वर्ष राज किया। इसका वास्तविक नाम कर्णाटक साम्राज्य था। इसकी स्थापना हरिहर और बुक्का राय नामक दो भाइयों ने की थी। पुर्तगाली इसे बिसनागा राज्य के नाम से जानते थे। इस साम्राज्य पर राजा के रूप में तीन राजवंशों ने राज्य किया ।
विजयनगर साम्राज्यका राजनीतिक इतिहास
1. संगम वंश (1336 से 1485 र्इतक)
अब्दुल रज्जाक के तत्कालीन राजनीतिक स्थितियों का वर्णन करते हुये लिखा है- ‘‘यदि जो कुछ कहा जाता है वह सत्य है जो वर्तमान राजवंश के राज्य में तीन सौ बन्दरगाह हैं, जिनमें प्रत्येक कालिकट के बराबर है, राज्य तीन मास 8 यात्रा की दूरी तक फैला है, देश की अधिकांश जनता खेती करती है । जमीन उपजाऊ है, प्राय: सैनिको की संख्या 11 लाख होती है ।’’ उनका बहमनी सुल्तानों के साथ लम्बा संघर्ष हुआ । विरूपाक्ष की अयोग्यता का लाभ उठाकर नरसिंह सालुव ने नये राजवंश की स्थापना की ।
2. सालुव वंश (1486 से 1505 र्इ. तक)
नरसिंह सालुव (1486 र्इ.) एक सुयोग्य वीर शासक था । इसने राज्य में शांति की स्थापना की तथा सैनिक शक्ति में वृद्धि की । उसके बाद उसके दो पुत्र गद्दी पर बैठे, दोनों दुर्बल शासक थे । 1505 र्इ. में सेनापति नरस नायक ने नरसिंह सालुव के पुत्र को हराकर गद्दी हथिया ली ।3. तुलव वंश (1505 से 1509 र्इ. तक)-
बहमनी राज्य व विजयनगर में संघर्ष रायचूर दोआब की समस्या
मुहम्मद प्रथम के काल में जो युद्ध व संघर्ष विजयनगर के साथ प्रारम्भ हुआ वह बहमनी राज्य के पतन तक चलता रहा । विजयनगर और बहमनी शासकों में रायचूर दोआब के अतिरिक्त मराठवाड़ा और कृष्णा कावेरी घाटी के लिए भी युद्ध हुए । कृष्णा गोदावरी घाटी में संघर्ष होते रहा। इसके प्रमुख कारणों में राजनीति, भौगोलिक तथा आर्थिक थे । फरिश्ता के अनुसार दोनों राज्यों के मध्य शान्ति विजयनगर द्वारा निर्धारित राशि देने से बन्द करता था तब तब युद्ध होते रहता था । भौगोलिक रूप बहमनी राज्य तीन तरफ से मालवा गुजरात उड़ीसा जैसे शक्तिशाली राज्यों से घिरा हुआ था । विजयनगर तीन दिशाओं से समुद्र से घिरा था । वे राज्य विस्तार के लिए केवल तुंगभद्रा क्षत्रे पर हो सकता था । अत: भौगोलिक रूप कटे- फटे होने के कारण बडे - बड़े बन्दरगाह भी इसी भाग में था ।
अपने निजी व्यापार को बढ़ाना चाहते थे व दुसरे पुर्तगाली एशिया और अफ्रीकीयों को इसार्इ बनाना मुख्य उद्देश्य था व अरब को कम करना मुख्य उद्देश्य था ।
गोआ पुर्तगालियों की व्यापारिक और राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र बना हुआ था । गोआ तथा दक्षिणी शासकों पर नियंत्रण रखा जा सकता था।
पडा़ेसी राज्यों से शत्रुता की नीति- विजयनगर सम्राज्य सदैव पड़ोसी राज्यों से संघर्ष करता रहा । बहमनी राज्य से विजयनगर नरेशों का झगड़ा हमेशा होते रहता था । इससे साम्राज्य की स्थिति शक्तिहीन हो गयी ।
निरंकुश शासक- अधिकांश शासक निरकुश थे, वे जनता में लोकपिय्र नहीं बन सके।
अयोग्य उत्तराधिकारी- कृष्णदेव राय के बाद उसका भतीजा अच्युत राय गद्दी पर बैठा । वह कमजोर शासक था । उसकी कमजोरी से गृह-युद्ध छिड़ गया तथा गुटबाजी को प्रोत्साहन मिला ।
उड़ी़सा-बीजापुर के आक्रमण- जिन दिनों विजयनगर साम्राज्य गृह-युद्ध में लिप्त था । उन्हीं दिनों उड़ीसा के राजा प्रतापरूद्र गजपति तथा बीजापुर के शासक इस्माइल आदिल ने विजयनगर पर आक्रमण कर दिया । गजपति हारकर लौट गया पर आदिल ने रायचूर और मुदगल के किलों पर अधिकार जमा लिया ।
गोलकुंडा तथा बीजापुुर के विरूद्ध सैनिक अभियान- इस अभियान से दक्षिण की मुस्लिम रियासतों ने एक संघ बना लिया । इनसे विजयनगर की सैनिक शक्ति कमजोर हो गयी।
बन्नीहट्टी का युद्ध तथा विजयनगर साम्राज्य का अन्त- तालीकोट के पास हट्टी में मुस्लिम संघ तथा विजयनगर साम्राज्य के मध्य युद्ध हुआ । इससे रामराय मारा गया । इसके बाद विजयनगर साम्राज्य का अन्त हो गया । बीजापुर व गोलकुंडा के शासकों ने धीरे- धीरे उसके राज्य को हथिया लिया ।
पुतगालियों का आगमन
सल्तनत काल में ही यूरोप के साथ व्यापारिक संबंध कायम हो चुका था 1453 र्इ. में कुस्तुन्तुनिया पर तुर्को का अधिकार हो जाने के बाद यूरोपीय व्यापारियों को आर्थिक नुकसान होने लगा । तब नवीन व्यापारिक मार्ग की खोज करने लगे । जिससे भारत में मशालों का व्यापार आसानी से हो सके । पुर्तगाल के शासक हेनरी के प्रयास से वास्कोडिगाम भारत आये ।अपने निजी व्यापार को बढ़ाना चाहते थे व दुसरे पुर्तगाली एशिया और अफ्रीकीयों को इसार्इ बनाना मुख्य उद्देश्य था व अरब को कम करना मुख्य उद्देश्य था ।
गोआ पुर्तगालियों की व्यापारिक और राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र बना हुआ था । गोआ तथा दक्षिणी शासकों पर नियंत्रण रखा जा सकता था।
विजय नगर साम्राज्य के पतन के कारण
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