Nawabs of Bengal and Englishmen
बंगाल के नवाब और अंग्रेज
Nawabs of Bengal and Englishmen
भारतीय प्रान्तों में सम्पन्नता की दृष्टि से बंगाल का स्थान महत्वपूर्ण था। अंग्रेजों को 1651 ई0 में शाहसुजा द्वारा (बंगाल का नवाब) तीन हजार वार्षिक कर के बदले में व्यापारिक छूट प्राप्त हुई। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि राजवंश की एक स्त्री की चिकित्सा डा0 विलियम ब्रौउटन द्वारा की गई। 1698 ई0 में सूबेदार अजीमुसान ने अंग्रेजों को तीन गाँवों की जमीदारी सूतानाती, कलिकत्ता और गोविन्दपुर प्रदान की। 1717 ई0 में बंगाल का सूबेदार मुर्शिद कुली खाँ बनाया गया।
मुर्शीद कुली खाँ (1717-27)
मुर्शीद कुली खाँ ने अपनी राजधानी ढ़ाका से मुर्शिदाबाद (मकसूदाबाद) स्थानान्तरित कर ली। इसे 1719 ई0 में उड़ीसा का क्षेत्र भी दे दिया गया। इसके काल की प्रमुख घटनायें निम्नलिखित हैं
सुजाउद्दीन (1727-39)
यह मुर्शीद कुली खाँ का दामाद था। इसे 1733 ई0 में बिहार का क्षेत्र भी प्रदान कर दिया गया। इस तरह बंगाल के अन्तर्गत अब बिहार और उड़ीसा के क्षेत्र भी सम्मिलित हो गये।
सरफराज (1739-40):- इसको बिहार के उप सूबेदार अलवर्दी खाँ ने गिरिया अथवा घिरिया नामक स्थान पर घेर कर मार डाला और इस तरह स्वयं बंगाल का सूबेदार बन बैठा।
सरफराज (1739-40):- इसको बिहार के उप सूबेदार अलवर्दी खाँ ने गिरिया अथवा घिरिया नामक स्थान पर घेर कर मार डाला और इस तरह स्वयं बंगाल का सूबेदार बन बैठा।
अली वर्दी खाँ (1740-56)
अली वर्दी खाँ के कुली तीन पुत्रियाँ थी उसके तीनों दामाद उसके जीवन काल में खत्म हो चुके थे। उसने अपने सबसे छोटे लड़की के पुत्र सिराजुद्दौला को अपना उत्तराधिकारी बनाया।
सिराजुद्दौला (1756-57)
अलीवर्दी खाँ के मृत्यु के पश्चात् उसका दौहित्र (पुत्री का पुत्र) सिराजुद्दौला उत्तराधिकारी बना। गद्दी पर बैठने के समय उसके तीन प्रमुख शत्रु थे-
इसमें अंग्रेज सबसे प्रबल शत्रु थे क्योंकि उन्होंने शौकत जंग को शरण दी थी तथा घसीटी बेगम को भी समर्थन दिया था।
1756 ई0 में यूरोप में सप्तवर्षीय युद्ध छिड़ जाने से अंग्रेजों ने कलकत्ता और फ्रांसीसियों ने चन्द्र नगर की किले बन्दी प्रारम्भ की। नवाब के मना करने पर फ्रांसीसी मान गये परन्तु अंग्रेज नहीं माने फलस्वरूप सिराजुद्दौला ने 20 जून 1756 को फोर्ट विलियम (कलकत्ता) पर अधिकार कर लिया। अंग्रेज गर्वनर डेªक ने भागकर फुल्टा द्वीप में शरण ली।
1756 ई0 में यूरोप में सप्तवर्षीय युद्ध छिड़ जाने से अंग्रेजों ने कलकत्ता और फ्रांसीसियों ने चन्द्र नगर की किले बन्दी प्रारम्भ की। नवाब के मना करने पर फ्रांसीसी मान गये परन्तु अंग्रेज नहीं माने फलस्वरूप सिराजुद्दौला ने 20 जून 1756 को फोर्ट विलियम (कलकत्ता) पर अधिकार कर लिया। अंग्रेज गर्वनर डेªक ने भागकर फुल्टा द्वीप में शरण ली।
की घटना (20 जून 1756)
इस घटना का वर्णन हालवेल द्वारा किया गया। इसके अनुसार 20 जून की रात को 146 अंग्रेजों को 18 फुट लम्बे तथा 14 फुट दस इंच चैड़े एक कोठरी में बन्द कर दिया गया। अगले दिन हाल बेल सहित मात्र 23 व्यक्ति जिन्दा बचे परन्तु इस घटना का वर्णन तत्कालीन अन्य किसी इतिहासकार ने नहीं किया है।
प्लासी के युद्ध की पृष्ठि भूमि
कलकत्ता के पतन का समाचार मद्रास पहुँचने पर क्लाइव और वाट्सन के नेतृत्व में एक सेना बंगाल पहुँची। क्लाइव ने मानिक चन्द्र को घूस देकर 2 जनवरी 1757 ई0 को कलकत्ता पर अधिकार कर लिया। सिराजुद्दौला को जब यह पता चला तब कलकत्ता पहुँचकर उसने क्लाइव से अली नगर की सन्धि कीं
अलीनगर की सन्धि (9 फरवरी 1757)
अली नगर सिराज द्वारा कलकत्ता को दिया गया नया नाम था। इस सन्धि के द्वारा अंग्रेजो को कलकत्ता किले बन्द करने की अनुमति दे दी गई। परन्तु जब अंग्रेजों ने फ्रांसीसी क्षेत्र पर पर पुनः आक्रमण किया तब अंग्रेजों और नवाब के बीच संघर्ष अवश्यम्भावी हो गया। फलतः प्लासी का प्रसिद्ध युद्ध हुआ।
प्लासी का युद्ध (23 जून 1757)
प्लासी का युद्ध वास्तव में युद्ध था ही नही अपितु यह एक षडयन्त्र था। इस षडयन्त्र में निम्नलिखित लोगों ने हिस्सा लिया।
1. मीरजाफर- नवाब का सेनापति।
2. जगतसेठ- कलकत्ता का सबसे बड़ा बैंकर।
3. अमीन चन्द- सबसे अमीर व्यक्ति एवं षडयन्त्र का नेता।
4. मानिकचन्द्र- नवाब के एक टुकड़ी का प्रमुख।
5. खादिम खाँ- नवाब के एक टुकड़ी का प्रमुख।
2. जगतसेठ- कलकत्ता का सबसे बड़ा बैंकर।
3. अमीन चन्द- सबसे अमीर व्यक्ति एवं षडयन्त्र का नेता।
4. मानिकचन्द्र- नवाब के एक टुकड़ी का प्रमुख।
5. खादिम खाँ- नवाब के एक टुकड़ी का प्रमुख।
नवाब की ओर से केवल मीर भदान, मोहन लाल एवं कुद फ्रांसीसी सैनिकों ने हिस्सा लिया। मीर महादन युद्ध में मारा गया। सिराजुद्दौला युद्ध के समय ही मुर्शीदाबाद लौट गया था। मीर-जाफर के पुत्र मीरन ने उसकी हत्या करवा दी। इस तरह प्लासी का युद्ध समाप्त हुआ।
मीर जाफर(1757-1760)
प्लासी के युद्ध में मीर जाफर की महत्वपूर्ण भूमिका थी। इसी कारण उसे बंगाल का नवाब बना दिया गया। मीर जाफर ने अंग्रेजों को निम्नलिखित सुविधायें दी-
1. अंग्रेजों को 24 परगना की जमींदारी दी गयी।
2. अंग्रेजों को वर्दवान तथा नदिया के क्षेत्रों को कम्पनी को दे दिया गया।
क्लाइव को भी प्लासी के युद्ध का फायदा मिला और उसे बंगाल का पहला गर्वनर बना दिया गया। अंग्रेजों ने मीर जाफर से लगातार धन की माँग की जिसको देने में नवाब असमर्थ था। हालवेल ने आरोप लगाया की नवाब डचों और मुगल सम्राट से मिलकर अंग्रेजों के विरूद्ध षडयन्त्र कर रहा है। मीर जाफर से अपना पद छोड़ने को कहा गया जिसे छोड़कर वह कलकत्ता चला गया। इसके बाद इसके दामाद मीर कासिम को बंगाल का नवाब बना दिया गया।
1. अंग्रेजों को 24 परगना की जमींदारी दी गयी।
2. अंग्रेजों को वर्दवान तथा नदिया के क्षेत्रों को कम्पनी को दे दिया गया।
क्लाइव को भी प्लासी के युद्ध का फायदा मिला और उसे बंगाल का पहला गर्वनर बना दिया गया। अंग्रेजों ने मीर जाफर से लगातार धन की माँग की जिसको देने में नवाब असमर्थ था। हालवेल ने आरोप लगाया की नवाब डचों और मुगल सम्राट से मिलकर अंग्रेजों के विरूद्ध षडयन्त्र कर रहा है। मीर जाफर से अपना पद छोड़ने को कहा गया जिसे छोड़कर वह कलकत्ता चला गया। इसके बाद इसके दामाद मीर कासिम को बंगाल का नवाब बना दिया गया।
मीर कासिम (1760-62)
यह मीर जाफर का दामाद था। मीर जाफर को हटाने के बाद इससे मुघेर की सन्धि की गयी।
मुघेर की सन्धि (27 September 1760
मीर कासिम के सुधार
बंगाल के नवाबों में अली वर्दी खाँ के बाद यह दूसरा सबसे योग्य नवाब था इसने बंगाल की दशा को सुधारने के लिए निम्नलिखित उपाय किये-
अंग्रेजों को उपर्युक्त कोई सुधार भी पसन्द नही आया इसी बीच अंग्रेज अपनी दस्तक (पास) का दुरपयोग करने लगे इसे वे भारतीय व्यापारियों को बेंचकर पैसा लेने लगे। भारतीय व्यापारियों को भी कम मात्रा में ही शुल्क देकर व्यापार करने का फायदा मिलने लगा। लेकिन इस सबका प्रभाव अन्ततः नवाब पर ही पड़ा अतः उसने व्यापारियों पर से चुंगी को माफ कर दिया। अंग्रेंज इससे बौखला गये और उन्होंने मीर कासिम को हटाकर पुनः मीर जाफर को बंगाल का नवाब बना दिया।
मीर जाफर (1763-65)
मीर कासिम को हटाये जाने के बाद उसने अवध के नवाब सुजाउद्दौला तथा दिल्ली के सम्राट शाह आलम द्वितीय के साथ मिलकर बक्सर का प्रसिद्ध युद्ध लड़ा।
बक्सर का युद्ध (22 अक्टूबर 1764):- मीर कासिम ,शुजाउद्दौला ,शाहआलम द्वितीय एवं मेजर मुनरो के बीच हुआ। इसमें अंग्रेजों की विजय हुई।
इस समय बंगाल का गर्वनर बेन्सिटार्ट बंगाल का नवाब मीर जाफर एवं दिल्ली का शासक शाहआलम द्वितीय था। बक्सर के युद्ध में विजय के बाद बंगाल में वास्तविक रूप से अंग्रेजों की प्रभुसत्ता की शुरूआत हुई। इसे प्लासी के युद्ध के बाद से नहीं माना जाता है। बक्सर की सफलता के बाद क्लाइव को बंगाल का गर्वनर बनाकर भेजा गया। 1765 ई0 में ही मीर जाफर की मृत्यु के बाद नजमुद्दौला को बंगाल का नवाब बनाया गया।
बक्सर का युद्ध (22 अक्टूबर 1764):- मीर कासिम ,शुजाउद्दौला ,शाहआलम द्वितीय एवं मेजर मुनरो के बीच हुआ। इसमें अंग्रेजों की विजय हुई।
इस समय बंगाल का गर्वनर बेन्सिटार्ट बंगाल का नवाब मीर जाफर एवं दिल्ली का शासक शाहआलम द्वितीय था। बक्सर के युद्ध में विजय के बाद बंगाल में वास्तविक रूप से अंग्रेजों की प्रभुसत्ता की शुरूआत हुई। इसे प्लासी के युद्ध के बाद से नहीं माना जाता है। बक्सर की सफलता के बाद क्लाइव को बंगाल का गर्वनर बनाकर भेजा गया। 1765 ई0 में ही मीर जाफर की मृत्यु के बाद नजमुद्दौला को बंगाल का नवाब बनाया गया।
नजमुद्दौला (1765-66)
इसके समय में क्लाइव ने इलाहाबाद की दो अलग-अलग सन्धियां की।
इलाहाबाद की प्रथम सन्धि 12 अगस्त
सन्धि पर हस्ताक्षरकर्ता-क्लाइव ,शाह आलम द्वितीय ,नजुमुद्दौला
इलाहाबाद की प्रथम सन्धि 12 अगस्त
सन्धि पर हस्ताक्षरकर्ता-क्लाइव ,शाह आलम द्वितीय ,नजुमुद्दौला
समकालीन इतिहासकार गुलाम हुसैन ने अपनी पुस्तक शियारुल मुत्खैरीन में लिखा है कि इस सन्धि की शर्तों को तय करने में और उस पर हस्ताक्षर करने में उतना भी समय नहीं लगा जितना की एक गधा को खरीदने में लगता है।
इलाहाबाद की दूसरी सन्धि (16 अगस्त 1765)
हस्ताक्षर कर्ता:-शुजाउद्दौला (अवध का नवाब) एवं क्लाइव। यह सन्धि अवध के नवाब शुजाउद्दौला एवं क्लाइव के बीच हुई। इसकी प्रमुख शर्तें निम्नलिखित थी-
सैफुद्दौला (1766-75)
मुबारकुद्दौला (1775)
यह बंगाल का अन्तिम नवाब था।
मुबारकुद्दौला (1775)
यह बंगाल का अन्तिम नवाब था।
बंगाल में द्वैध प्रशासन (1765-72)
इलाहाबाद की द्वितीय सन्धि के बाद क्लाइव ने बंगाल में द्वैध शासन व्यवस्था लागू की। इसे 1772 में वारेन हेस्टिंग्स ने समाप्त किया।
इस शासन में वास्तविक शक्ति कम्पनी के पास थी जबकि प्रशासन का उत्तरदायित्व नवाब के कन्धों पर था। कम्पनी को बंगाल की दीवानी प्राप्त हो चुकी थी उसने नजमुद्दौला को 53 लाख रूपये देकर निजायत का कार्य भी प्राप्त कर लिया। इस तरह बंगाल पर अप्रत्यक्ष रूप से अंग्रेजों ने शासन किया उन्होंने तीन उप-दीवान भी नियुक्त किये-
इस शासन में वास्तविक शक्ति कम्पनी के पास थी जबकि प्रशासन का उत्तरदायित्व नवाब के कन्धों पर था। कम्पनी को बंगाल की दीवानी प्राप्त हो चुकी थी उसने नजमुद्दौला को 53 लाख रूपये देकर निजायत का कार्य भी प्राप्त कर लिया। इस तरह बंगाल पर अप्रत्यक्ष रूप से अंग्रेजों ने शासन किया उन्होंने तीन उप-दीवान भी नियुक्त किये-
प्रसिद्ध भारतीय इतिहासकार के एम-पन्निकर ने द्वैध शासन के काल को ’’डाकू राज्य’’ कहा जबकि अंग्रेज इतिहासकार पर्सिवल स्पेयर ने इसे ’’लूट एवं वेशर्मी’ का काल कहा। वारेन हेस्टिंग्स ने द्वैध शासन समाप्त कर बंगाल को सीधे अंग्रेजी राज्य के नियंत्रण में ले लिया।
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