Dynasties of south india
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Dynasties of south india |
दक्षिण भारत के राजवंश
Dynasties of south india
पल्लव वंश
2) शिवस्कंदवर्मन को पल्लव वंश का संस्थापक माना जाता है.
3) पल्लव शासकों ने अपने शासनकाल में कांची को अपनी राजधानी बनाया.
4) इस काल के प्रमुख शासक थे : सिंघवर्मा प्रथम,शिवस्कंदवर्मन प्रथम, वीरकुर्च, शान्दवर्मा द्वितीय, कुमार्विष्णु प्रथम, सिंघवर्मा द्वितीय, और विष्णुगोप.
विष्णुगोप के बारे में खा जाता है कि वह समुद्रगुप्त से युद्ध में पराजित हो गया था जिसके बाद पल्लव कमजोर पड़ गए.
5) सिंह वर्मा द्वितीय के पुत्र, सिंह विष्णु ने 575 ई. में चोलों/कालभ्र की सत्ता को कुचलकर अपने साम्राज्य की पुनर्स्थापना की.
6) 670 में, परमेश्वर वर्मा प्रथम गद्दी पर बैठा. उसने चालुक्य रजा विक्रमादित्य प्रथम को आगे बढ़ने से रोका. हालाँकि चालुक्यों ने पल्लवों के एक अन्य प्रसिद्द शत्रु पांड्य राजा अरिकेसरी मारवर्मा से हाथ मिला लिया और परमेश्वर वर्मा प्रथम को पराजित कर दिया.
7) 695 ई. में परमेश्वर वर्मा प्रथम की मृत्यु हो गई और एक शांतिप्रिय शासक नरसिंह वर्मा द्वितीय उसका उत्तराधिकारी बना. उसे कांची में प्रसिद्द कैलाशनाथ मंदिर बनवाने के लिए जाना जाता है. 722 ई. में अपने बड़े बेटे की अचानक मृत्यु के दुःख में उसकी मृत्यु हो गई.
8) 722 ई. में उसका छोटा पुत्र परमेश्वर वर्मा द्वितीय गद्दी पर बैठा. वह 730 ई. में बिना की वारिस के ही मृत्यु को प्राप्त हो गया जिससे पल्लव राज्य में एक अव्यवस्था व्याप्त हो गई.
9) साम्राज्य के कुछ अधिकारीयों और रिश्तेदारों के साथ घरेलु युद्ध के बाद नंदी वर्मा द्वितीय गद्दी पर बैठा. उसने राष्ट्रकूट राजकुमारी रीतादेवी से विवाह किया और पल्लव राज्य को पुनः स्थापित किया.
10) उसका उत्तराधिकारी दंतीवर्मा (796-846) बना जिसने 54 वर्षों तक शासन किया. दंतीवर्मा पहले राष्ट्रकूट शासक दंतीदुर्ग द्वारा और फिर पांड्य शासकोण द्वारा पराजित हुआ. 846 में नंदीवर्मा तृतीय उसका उत्तराधिकारी बना.
11) नंदीवर्मा तृतीय का उत्तराधिकारी नृपतुंगवर्मा था जिसके दो भाई अपराजितवर्मा और कंपवर्मा थे.
चालुक्य
1) प्रारंभिक पश्चिम काल (छठी – 8वीं शताब्दी) बादामी (वातापी) के चालुक्य;
2) पश्चात् पश्चिम काल (7वीं – 12वीं शताब्दी) कल्याणी के चालुक्य;
3) पूर्वी चालुक्य काल (7वीं – 12वीं शताब्दी) वेंगी के चालुक्य
1. पुलकेशिन प्रथम (543-566) बादामी चालुक्य वंश का प्रथम शासक था जिसकी राजधानी बीजापुर में वातापी थी.
2. कीर्तिवर्मा प्रथम (566-596) उसका उत्तराधिकारी था.जब इसकी मृत्यु हुई तब राजकुमार पुलकेशिन द्वितीय बच्चा था इसलिए सिंहासन खाली रहा और राजा के भाई मंगलेश(597-610), को संरक्षक शासक के रूप में नियुक्त किया गया. कई वर्षों तक उसने राजकुमार की हत्या के कई असफल प्रयास किए किन्तु अंततः राजकुमार और उसक मित्रों द्वारा स्वयं की हत्या करवा ली.
3. पुलकेशिन प्रथम का पुत्र, पुलकेशिन द्वितीय (610-642), हर्षवर्धन का समकालीन था और चालुक्य का सबसे प्रसिद्द रजा हुआ. उसका शासनकाल कर्नाटक के इतिहास का सर्वश्रेष्ठ समय माना जाता है. उसने नर्मदा के तट पर हर्षवर्धन को पराजित किया.
4. कोसल और कलिंग पर आधिपत्य के पश्चात्, पुलकेशिनद्वितीय के भाई कुब्ज विष्णुवर्धन द्वारा पूर्वी चालुक्य वंश (वेंगी) की स्थापना हुई.
5. 631 तक चालुक्य साम्राज्य का विस्तार इस समुद्र से उस समुद्र तक हो चुका था. हालाँकि 642 में पल्लव शासक नरसिंहवर्मा प्रथम ने चालुक्य राजधानी बादामी पर आक्रमण कर दिया और पुलकेशिन द्वितीय को परास्त कर उसकी हत्या कर दी.
6. चालुक्यों का उभार एक बार पुनः हुआ जब विक्रमादित्य प्रथम (655-681), ने अपने समकालीन पांड्य,पल्लव, चोल और केरल के शासकों को परास्त कर उस क्षेत्र में चालुक्यों की सर्वोच्चता स्थापित की.
7. विक्रमादित्य द्वितीय (733-745) ने पल्लव साम्राज्य के एक बड़े क्षेत्र पर अपना अधिकार जमाने के लिए पल्लव राजा नंदीवर्मा द्वितीय को परस्त किया.
8. विक्रमादित्य द्वितीय का पुत्र, कीर्तिवर्मा द्वितीय (745), राष्ट्रकूट वंश के संस्थापक दंतीदुर्ग द्वारा हर दिया गया.
मदुरई के पाण्ड्य (छठी से 14वीं शताब्दी)
2) इनका सबसे प्रसिद्द शासक नेंडूजेलियन था जिसने मदुरई को अपनी राजधानी बनाया.
3) पाण्ड्य शासकों ने मदुरई में एक तमिल साहित्यिक अकादमी की स्थापना की जिसे संगम कहा जाता है. उन्होंने त्याग के वैदिक धर्म को अपनाया और ब्राम्हण पुजारियों का संरक्षण किया. उनकी शक्ति एक जनजाति ‘कालभ्र’ के आक्रमण से घटती चली गई.
4) छठी सदी के अंत में एक बार पुनः पांड्यों का उदय हुआ. उनका प्रथम महत्वपूर्ण शासक दुन्दुंगन (590-620) था जिसने कालभ्रों को परस्त कर पांड्यों के गौरव की स्थापना की.
5) अंतिम पांड्य राजा पराक्रमदेव था जो दक्षिण में विस्तार की प्रक्रिया में उसफ़ खान (मुह्हमद-बिन-तुगलक़ का वायसराय) द्वारा पराजित किया गया.
चोल (9वीं – 13वीं शताब्दी)
2) आरंभिक चोल शासक कारिकाल चोल थे जिन्होंने दूसरी शताव्दी में शासन किया.
3) 850 में पाण्ड्य-पल्लव युद्द के दौरान विजयालय ने तंजौर पर अपना आधिपत्य जमा लिया. अपने राज्याभिषेक को सफल बनाने के लिए इसने तंजौर में एक मंदिर बनवाया. इस दौरान श्रवणबेलगोला में गोमातेश्वर की एक विशाल प्रतिमा भी स्थापित कराई गई.
4) विजयालय का पुत्र आदित्य प्रथम (871-901)उसका उत्तराधिकारी बना.
5) राजराज प्रथम (985-1014) के शासन के दौरान चोल अपने शीर्ष पर थे. उसने राष्ट्रकूटों से अपना क्षेत्र वापस छीन लिया और चोल शासकों में सर्वाधिक शक्तिशाली बन गया. उसने तंजावुर (तमिलनाडु) में भगवान शिव का एक सुन्दर बनवाया. यह उसके नाम से राजराजेश्वर कहलाया.
6) राजराज प्रथम का पुत्र, राजेंद्र चोल (1014-1044), इस वंश का एक अन्य महत्वपूर्ण शासक था जिसने उड़ीसा, बंगाल, बर्मा और अंडमान एवं निकोबार द्वीप पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया. इसके शासनकाल के दौरान भी चोल वंश की प्रसिद्धि चरम पर थी.
इसने श्री लंका पर भी अपना कब्ज़ा किया था.
7) कुलोत्तुंग प्रथम (1070-1122) एक अन्य महत्वपूर्ण चोल शासक था. कुलोत्तुंग प्रथम ने दो साम्राज्यों वेंगी के पूर्वी चालुक्य और तंजावुर के चोल साम्राज्य को जोड़ दिया. आदि सदी के लम्बे शासन के बाद 1122 ई.कुलोत्तुंग प्रथम की मृत्यु हो गई और उसका पुत्र विक्रम चोल, जिसे त्यागसमुद्र भी कहते थे, उसका उत्तराधिकारी बना.
8) चोल वंश का अंतिम शासक राजेंद्र तृतीय (1246-79) था.वह एक कमजोर शासक था जिसने पांड्यों के समक्ष समर्पण कर दिया. बाद में मालिक काफूर ने 1310 में इस तमिल राज्य पर आक्रमण कर दिया और चोल साम्राज्य समाप्त हो गया.
राष्ट्रकूट
2) दंतीदुर्ग का उत्तराधिकारी कृष्ण प्रथम (756-774) बना. कृष्ण प्रथम ने द्रविड़ शैली के एलोरा के प्रसिद्द कैलाशनाथ मंदिर का निर्माण करवाया.
3) इस वंश के अन्य शासक थे गोविन्द द्वितीय (774- 780), ध्रुव (780-790), गोविन्द तृतीय (793-814) और अमोघवर्ष नृपतुंग प्रथम (814-887).
4) अमोघवर्ष इस वंश का महान शासक था. वह गोविन्द तृतीय का पुत्र था. अमोघवर्ष के साम्राज्य के विस्तार के विषय में अरबी यात्री ‘सुलेमान’ से जानकारी मिलती है जो 851 ई. में उसके दरबार में आया था और अपनी पुस्तक में लिखा है कि ”उसका साम्राज्य उस समय के दुनिया के चार बड़े साम्राज्यों में से एक था”.
5) इस दौरान भारत में आये अरबी यात्री, अल-माश्दी ने राष्ट्रकूट राजा को, ‘भारत का महानतम राजा’ कहा है.
प्रतिहार (8वीं से 10वीं शताब्दी)
b) नागभट्ट प्रथम, ने सिंध से राजस्थान में घुसपैठ करने वाले अरबी आक्रमणकारियों से पश्चिम भारत की रक्षा की.
c) नागभट्ट प्रथम, के बाद प्रतिहारों को लगातार हार का सामना करना पड़ा जिसमें इन्हें सर्वाधिक राष्ट्रकूट शासकों ने पराजित किया.
d) प्रतिहार शक्ति, मिहिरभोज, जो भोज के नाम से प्रसिद्द था, की सफलता के बाद अपना खोया गौरव पुनः पा सकी.
e) उसके विख्यात शासन ने अरबी यात्री सुलेमान को आकर्षित किया था.
f) मिहिरभोज का उत्तराधिकारी महेन्द्रपाल प्रथम था जिसकी प्रमुख उपलब्धि मगध और उत्तरी बंगाल पर अपना आधिपत्य था. उसके दरबार का प्रसिद्द लेखक राजशेखर था जिसने अनेक साहित्यिक रचनाएँ लिखी -
1) कर्पूरमंजरी, 2) बालरामायण, 3) बाला और भरता, 4) काव्यमीमांसा
g) महेन्द्रपाल की मृत्यु के साथ ही सिंहासन के लिए संघर्ष शुरू हो गया. भोज द्वितीय ने गद्दी कब्ज़ा ली लेकिन जल्द ही, सौतेले भाई महिपाल प्रथम ने खुद को सिंहासन वारिस घोषित कर दिया.
राष्ट्रकूट शासक इन्द्र तृतीय के दक्कन वापसी से महिपाल को उसके आक्रमण से लगे घातक झटके से सँभलने का मौका मिला. महिपाल का पुत्र और उत्तराधिकारी, महेन्द्रपाल प्रथम अपने साम्राज्य को बनाये रखने में कामयाब रहा.
पाल (8वीं से 11वीं शताब्दी)
2) पाल साम्राज्य की स्थापना 750 ई. में गोपाल ने की थी. गोपाल एक उत्कट बौद्ध था.
3) उसने ओदंतपुरी (बिहारशरीफ़ जिला, बिहार) में बौद्ध बिहार की स्थापना की.
4) गोपाल का उत्तराधिकारी धर्मपाल बना जिसने पाल राज्य को महानता पर पहुँचाया. उसके नेतृत्व में राज्य का विस्तार हुआ और लगभग समपूर्ण बंगाल एवं बिहार उसका हिस्सा बन गए.
5) 32 वर्षों के शासन के बाद धर्मपाल की मृत्यु हो ओ गई और वो अपना विस्तृत साम्राज्य अपने पुत्र देवपाल के लिए छोड़ गया.
6) देवपाल 810 में गद्दी पर बैठा और 40 वर्षों तक शासन किया. उसने प्रागज्योतिषपुर (असम), उड़ीसा के क्षेत्रों और आधुनिक नेपाल के क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण स्थापित किया.
7) उसने प्रसिद्द बौद्ध लेखक हरिभद्र को संरक्षण दिया. बौद्ध कवि और लोकेश्वरशतक के लेखक वज्रदत्त, देवपाल के राजदरबार में विभूषित होते थे.
सेन (11वीं से 12वीं शताब्दी)
2) इसका संस्थापक सामंतसेन था जो ‘ब्रम्हक्षत्रिय’ कहलाया.
3) सामंतसेन के बाद उसका पुत्र हेमंतसेन गद्दी पर बैठा. इसने बंगाल की अस्थिर राजनीतिक स्थिति का लाभ उठाकर एक स्वतंत्र रियासत के रूप में खुद को प्रमुखता से स्थापित किया.
4) हेमंतसेन का पुत्र विजयसेन (प्रसिद्द राजा) लगभग सम्पूर्ण बंगाल पर नियंत्रण स्थापित कर अपने परिवार को प्रकाश में लाया. विजयसेन ने अनेक उपाधियाँ ली जैसे – परमेश्वर, परमभट्टारक और महाराजाधिराज.
5) प्रसिद्द कवि श्रीहर्ष ने उसकी प्रशंसा में विजयप्रशस्ति की रचना की.
6) विजयसेन का उत्तराधिकारी उसका पुत्र बल्लालसेन बना. वह एक प्रसिद्द विद्वान था.
7) लक्ष्मणसेन के शासन के दौरान ये साम्रज्य पतन की ओर आ गया था.
देवगिरी के यादव (12वीं से 13वीं शताब्दी)
2) भिल्लम ने यादव साम्राज्य की नींव रखी जो एक शताब्दी तक कायम रहा.
3) सिहंन इस परिवार का सबसे शक्तिशाली शासक था.
4) दक्षिण में अपनी सफलता से उत्तेजित होकर सिंहन ने अपने वंशगत शत्रु, उत्तर में परमार और गुजरात में चालुक्यों से युद्ध छेड़ा.
5) उसने परमार राजा अर्जुनवर्मन को पराजित कर उसकी हत्या कर दी. इस तरह सिंहन के शासन में यादव राज्य अपने गौरव के चरम पर पहुंचा.
6) संगीत पर एक प्रमुख रचना ‘संगीतरत्नाकर’ इसके दरबार में लिखी गई. अनंतदेव और चांगदेव, दो प्रसिद्द खगोलशास्त्री इसके दरबार में विभूषित होते थे.
7) संभवतः रामचंद्रअंतिम यादव शासक था.
मालिक काफूर ने आसानी से कंकरदेव को परास्त कर हत्या कर दी और यादव राज्य को अपने कब्जे में ले लिया.
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